हम मुसाफिर हैं कोई न पहचाने तो गिला क्यूँ होगा !
ओस की बूँदें न पहुँची ठिकाने तो गिला क्यूँ होगा !
सुना है वो शख्स तुम्हारे शहर में ठहरा था चार दिन
नहीं था मन तुम्हारा तो बताओ वो मिला क्यूँ होगा !
कांटो ने जख्म दे दे के उसका क़त्ल किया था कल
तुम्ही बताओ वो फूल उन काँटों से मिला क्यूँ होगा !
इक जंजीर के काँटों में सारे फूल पिरो कर मैंने
फिर से पेड़ को सौपें तो कोई फूल खिला क्यूँ होगा !
चमक के शोर में गुम है अँधेरों की हकीकत
अंधेरों में कोई सूर्य क्षितिज में खिला क्यूँ होगा !
#thoughtful_anil
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