Thursday 2 November 2017

हम मुसाफिर हैं

हम मुसाफिर हैं कोई न पहचाने तो गिला क्यूँ होगा !
ओस की बूँदें न पहुँची ठिकाने तो गिला क्यूँ होगा !
सुना है वो शख्स तुम्हारे शहर में ठहरा था चार दिन 
 नहीं था मन तुम्हारा तो बताओ वो मिला क्यूँ होगा !
कांटो ने जख्म दे दे के उसका क़त्ल किया था कल 
तुम्ही बताओ वो फूल उन काँटों से मिला क्यूँ होगा !
इक जंजीर के काँटों में सारे फूल पिरो कर मैंने 
फिर से पेड़ को सौपें तो कोई फूल खिला क्यूँ होगा !
चमक के शोर में गुम है अँधेरों की हकीकत 
अंधेरों में कोई सूर्य  क्षितिज में खिला क्यूँ होगा !

#thoughtful_anil

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