पाठक , तुम सुन सकते हो
सारे अनकहे भाव जो
शब्दों में पिरोता हूँ मैं !
पाठक , तुम महसूस कर सकते हो
मेरे वो अहसास जो
हँस हँस के रोता हूँ मैं !
पाठक तुम्हारे दिल में उठती होगी
वही हूक जो
मेरे दिल को चीरती है !
कितने अच्छे हो न तुम पाठक ,
कि समझ लेते हो शब्दों से ही सब कुछ -
वो भी जो कहा गया !
वो भी जो नहीं कहा गया !
जी लेते हो किसी सिरफिरे का ग़म ,
जो बस लिखता गया दिल की बेचैनी !
पाठक , तुम हम सब लेखक बिरादरी से बहुत ऊँचे हो -
क्योंकि तुम हो
वो कन्धा , जिसपे हम अपना सिर रखकर रोते हैं !
पाठक , तुम हो वो दोस्त
जो हमेशा होता है हमारे साथ
हँसने में , रोने में , पाने में खोने में !
उस अकेले कोने में जहाँ बैठकर बुनता हूँ ,
मैं कविता ,गज़ल , नज़्म बहर !
पाठक , जरा हमें बताओ कैसे संजो पाते हो इतना सब ?
ये हृदय की विराटता कहाँ से पाते हो ?
वैसे इक सत्य है पाठक ,
कि अगर तुम नहीं होते -
तो शायद हम नहीं होते !!
पक्का हम नहीं होते !!
-अनिल पटेरिया
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