Friday 14 September 2018

बिरला_बीएचयू_और_बवाल

यह तीन शब्द काशी हिंदू विश्वविद्यालय से जुड़े हर व्यक्ति ने सुने होंगे। और इन तीनों के आपसी संबंध को भी समझता होगा। लेकिन इन तीन शब्दों का वास्तव में कोई संबंध है या ये एक बनी बनाई अवधारणा के पोषक हैं। विरोध, मुखरता, यदि सभ्य समाज के तत्त्व नहीं है तब यह माना जा सकता है कि कला को पढ़ने और समझने वाले छात्रों में यह पाया जाता है। और इस तरह छठ असभ्य हैं। तमाम विषमताओं का बोझा ढोता कला संकाय यदि इनका विरोध कर असभ्य कहलाता है। तो कहलाता रहे। यदि किसी भी अराजक घटना या अराजक स्थिति के लिए छात्र जिम्मेदार हैं तो तुमसे ज्यादा प्रशासन और वे परिस्थितियां जिम्मेदार हैं। जिनके कारण अराजकता उत्पन्न होने दी जाती है। माहौल को बिगड़ते हुए, पहले तो प्रशासन दर्शक बनकर तमाशा देखता है और फिर दोहरेपन की कार्यवाहियां कर अपने को जिम्मेदारियों से बचाता है। दही छात्रों की बात ,तो बात का बवाल कोई भी छात्र नहीं बनाता। बल्कि उन छात्रों की आड़ में तथाकथित छात्रनेता ,जो छात्र तो किसी भी हाल में नहीं होते ।वे अपने रौब और राजनीति चमकाते हैं । और ऐसे छात्र सिर्फ बिरला में पाए जाते है ये सोचना मूर्खता है क्यूंकि ऐसे प्राणी हर फैकल्टी और हॉस्टल में पाए जाते है । और ये हर छोटी बात का बतंगड़ बनाने , उसको आत्मसम्मान का मुद्दा बनाने , और फिर इस आग में अपनी स्वार्थ की रोटियां सेंकने से नहीं चूकते । इसीलिए सभी समझदार छात्रों से यही अपील है कि खुद का दुरुपयोग होने से स्वयं को बचाएं । और प्रशासन से कहना है , कि कार्यवाही करने का शौक यदि इतना ही है तो घटना से पहले कार्यवाही करें ...असली जिम्मेदारों पर कार्यवाही करें...किसी पर भी कार्यवाही कर खानापूर्ति न करें । उनकी समस्याओं पर ध्यान दें । एक अच्छे माहौल की चाहत हर विद्यार्थी का सपना होती है । उसको उपलब्ध कराएं ।
जय महामना !!

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#date_14_09_2018

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