फसल झुलस गई है
-अनिल पटेरिया
जल गए साथ में सपने
कुछ मर गए अपने
अपने !!
एक फसल के साथ
एक नस्ल झुलस गयी
अकाल में अक्ल झुलस गई
हमारी फसल झुलस गई है
खाने की चिंता
खिलाने की चिंता
ढोरों को पानी पिलाने की चिंता
मरियल गाय को जिलाने की चिंता
पता नहीं किसी को
हमारी हालत का ज़िम्मेदार
है कौन ??
पता है कौन ...
वह पूरी सभ्य जाति
जो बैठी मौन !!
-अनिल पटेरिया
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