Friday 6 April 2018

फसल झुलस गई है
जल गए साथ में सपने 
कुछ मर गए अपने 
अपने !!
एक फसल के साथ
एक नस्ल झुलस गयी 
अकाल में अक्ल झुलस गई 
हमारी फसल झुलस गई है 
खाने की चिंता 
खिलाने की चिंता 
ढोरों को पानी पिलाने की चिंता 
मरियल गाय को जिलाने की चिंता 
पता नहीं किसी को 
हमारी हालत का  ज़िम्मेदार 
है कौन ?? 
पता है कौन ...
वह पूरी सभ्य जाति 
जो बैठी मौन !!


-अनिल पटेरिया 

No comments:

Post a Comment

#हां_कंश_मैं...

#हां_कंश_मैं.. मैं तुच्छ मैं स्वार्थी मैं घृणापात्र मरघट की राख़ मैं नफ़रत की आंख मैं चोर मैं पापी अघोर मैं लोभी मैं कामी मैं चरित्...