रहा न इश्क हमें अपनी ज़िंदगी से कोई।
क्यों करें शिक़वा किसी आदमी से कोई।
यार मिला मेरा मुझसे अज़नबी बनकर ,
फिर क्यों वाश्ता हो उसी अज़नबी से कोई।
सफर में जिसने सारे शज़र उजाड़े हैं ,
कोई आसरा न रखो उसकी बंदगी से कोई।
सफर के अंत से पहले ही गिर गया , दिलबर
न बने रिश्ता कभी ऐसे दिलनशीं से कोई।
फ़िराक़-ए-ग़म का पहले जलवा तो देखे अनिल
फिर भी रहे ताब तो करे इश्क हमी से कोई।
-अनिल पटेरिया
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