Monday 23 April 2018

रहा न इश्क हमें अपनी ज़िंदगी से कोई...

रहा न इश्क हमें अपनी ज़िंदगी से कोई।
क्यों करें शिक़वा किसी आदमी से कोई।  
यार मिला मेरा मुझसे अज़नबी बनकर ,
फिर क्यों वाश्ता हो उसी अज़नबी से कोई। 
सफर में जिसने सारे शज़र उजाड़े हैं ,
कोई आसरा न रखो उसकी बंदगी से कोई। 
सफर के अंत से पहले ही गिर गया , दिलबर 
न बने रिश्ता कभी ऐसे दिलनशीं से कोई।  
फ़िराक़-ए-ग़म का पहले जलवा तो देखे अनिल 
फिर भी रहे ताब तो करे इश्क हमी से कोई। 

-अनिल पटेरिया 

No comments:

Post a Comment

#हां_कंश_मैं...

#हां_कंश_मैं.. मैं तुच्छ मैं स्वार्थी मैं घृणापात्र मरघट की राख़ मैं नफ़रत की आंख मैं चोर मैं पापी अघोर मैं लोभी मैं कामी मैं चरित्...