Friday 28 April 2017

सुन रहा हूँ…

सुन रहा हूँ…
है प्रहार साँच पर ,
पत्तियाँ हैं आँच पर …
बन मृदंग काँच पर
पैर छिल रहे हैं
मंज़िलों को मिल रहें हैं
रास्तों को सिल रहे हैं
हाँथ बेतरतीब से
या की बहुत तरकीब से
व्यर्थ क्या है ? रंग-हिना है
नफ़रतों की फ़ौज में ,
मैने अपनों को सुना है …
सुन रहा हूँ…
चुन रहा हूँ…
खुद ही राहें बुन रहा हूँ…


#thoughtful_anil

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