Friday 6 April 2018

पता कल बारिश हुई थी
आसमां से रिस रिस हुई थी
चार से सवा चार तक
की माटी गीली नहीं हुई
इससे ज्यादा तो पसीना
गिरता है खेतों में
आंसूं झिरता है रेतो में
बचपन याद आता है
की वो दिन याद आता है
बारिश चार नाहिं तो तीन दिन
लगातार रिम झिम रिम झिम
होया करती थी
मां ख़ुशी ख़ुशी खेतों में बीज
बोया करती थी
न अब बारिश होती है
न मां अब फसलें बोती है
हम भी शहर वाले हो गए
मास्क के हवाले हो गए

-अनिल पटेरिया 

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